बदनावर। भगवान आदिनाथ का जीवन हमें कर्तव्य पालन की प्रेरणा देता है उन्होंने स्वयं का कल्याण तो किया ही मानव को सभ्यता संस्कार एवं संस्कृति की भी पहचान कराई समस्त कलाओं का ज्ञान कराया ब्राह्मी लिपि भी उन्हीं की देन है
मनुष्य के 16 संस्कारों में विवाह भी एक संस्कार है जिसकी शुरुआत भगवान आदिनाथ के काल से हुई उन्हें ज्ञात था कि उनकी मुक्ति निश्चित है क्योंकि वह प्रथम तीर्थंकर थे फिर भी उन्होंने लोक कल्याण का कार्य कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया इसीलिए तीर्थंकर परमात्मा के जन्मदिन को जन्म कल्याणक कहा जाता है
उक्त प्रवचन साध्वी श्री शुद्धि प्रसन्ना श्रीजी महाराज साहब ने प्रथम तीर्थंकर श्री आदेश्वर भगवान के जन्म कल्याणक एवं दीक्षा कल्याणक दिवस के उपलक्ष में आयोजित धर्म सभा में कहे।
इस के पुर्व श्रीभौयरा वाला आदेश्वर जैन मंदिर से एक विशाल रथ यात्रा प्रारंभ हुई रथ यात्रा में चांदी जी की वेदी में श्री आदेश्वर भगवान की प्रतिमा विराजित थी वैदि जी को आकर्षक फूलों से सजाया गया था तथा प्रतिमा की सुंदर अंग रचना की गई थी आसपास चवर ढुलाते हुए एवं भोयरा वाला की जय जयकार करते हुए श्रावक श्राविकाएं चल रहे थे पुरुष वर्ग सफेद परिधान में तो महिलाएं केशिरिया परिधान में नृत्य करते हुए चल रहे थे रथ यात्रा के नगर भ्रमण के दौरान जगह-जगह चावल एवं श्रीफल से रथयात्रा का गहुली कर स्वागत किया गया ।नगर भ्रमण पश्चात रथयात्रा पुनः बड़े मंदिर पहुंची जहां आरती के पश्चात रथ यात्रा का समापन हुआ
श्री आदेश्वर भगवान के जन्म कल्याणक एवं दीक्षा कल्याणक के अवसर पर प्रातः 6 बजे बड़े मंदिर में शस्त्रव अभिषेक प्रारंभ हुआ इसके पश्चात केसर पूजन एवं चंदन पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे इस अवसर पर मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया एवं मूलनायक श्री ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा की आकर्षक अंग रचना की गई अंत मे साधर्मीकवातसल्य का आयोजन किया गया।
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