देवास। (पंडित प्रदीप मोदी) देवास में अधिकांशतः विभागों में मठाधीश की तरह जमे कर्मचारियों की इच्छा पर ही विभागीय अधिकारियों की सफलता असफलता निर्भर करती हैं। ये कर्मचारी चाहे तो अधिकारी सफल माना जाता है और ये नहीं चाहे तो अधिकारी बेमतलब के झमेलों में फंसता चला जाता हैं तथा विवादित होकर असफल हो जाता हैं। बरसों से विभागों की बैसाखी बने कर्मचारियों को विभागीय अधिकारी तो ठीक, कलेक्टर भी कभी हिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर कर्मचारी, नेताओं के यहां आने वाले आगंतुकों के जूते व्यवस्थित करते देखे जाते हैं, ये मठाधीश कर्मचारी वे हैं जो पत्तलकारों को पत्रकार मानकर पोमाते हैं। जो विभागीय अधिकारी अपने विभाग के मठाधीश कर्मचारी का शरणागत हो जाता हैं,उसका दाना-पानी स्वत: प्रारंभ हो जाता हैं और विभाग भी अपने पारंपरिक तौर-तरीकों से चलने लगता है, अधिकारी को सिर्फ कर्मचारी के बताए स्थान पर चिड़िया बिठाना होती हैं। यह कहानी देवास जिला प्रशासन के करीब-करीब हर विभाग की है और हर विभाग में एक बंदा ऐसा है, जो अधिकारी सहित सारे विभाग को अपने हिसाब से संचालित करता है। देवास के आबकारी विभाग में भी एक बंदा ऐसा ही है, जो अपने हिसाब से अधिकारी और विभाग को संचालित करने का हुनर रखता है। अधिकारी एवं विभाग दोनों इसके हिसाब से चले तो इसे नौकरी करने में मजा आता है, अन्यथा यह अपने मुंह लगे चंद दलाल किस्म के कथित पत्रकारों के माध्यम से अधिकारी और विभाग को बदनाम करने में भी देर नहीं लगाता, राजस्व को नुकसान पहुंचाने वालों का यह चहेता हैं। अभी कुछ समय पहले वंदना पाण्डेय नामक अधिकारी देवास में जिले की आबकारी अधिकारी बनकर आई थी, वंदना पाण्डेय ने आबकारी विभाग के इस स्वयंभू मठाधीश को घांस नहीं डाली तो बस फिर क्या था, देवास का आबकारी विभाग सारे मध्यप्रदेश में चर्चा पा गया और लोगों की धारणा बन गई कि देवास का आबकारी विभाग पुरुष प्रधान विभाग है, जहां महिला अधिकारी सफल नहीं हो सकती। कारण सिर्फ इतना था कि वंदना पाण्डेय ने आबकारी विभाग के इस स्वयंभू मठाधीश को मुंह नहीं लगाया था, क्योंकि इसने उस समय अवैध अहातों को संरक्षण प्रदान कर रखा था, राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाले ठेकेदारों का मार्गदर्शक बना हुआ था। यह चंद दलाल किस्म के पत्तलकारों को मैनेज कर, मुगालता पालता था कि उसने सारे मीडिया जगत को अपना पालतू बना लिया है। इस मठाधीश के मुंह लगे पत्तलकार, नेता-अधिकारियों के चरणों में लोट लगाते है, इसलिए अन्य प्रतिभावान पत्रकार झिझकते हैं कि कहीं ये उलझा ना दे, अन्यथा देवास में जनहितैषी प्रतिभावान पत्रकारों की कमी नहीं है। पत्रकारों को वंदना पाण्डेय के कार्यकाल में उपेक्षित होना पड़ा, खबर एवं सम्मान से वंचित रखा जाने लगा तो उन्होंने बता दिया और देवास के आबकारी विभाग को प्रदेश स्तर पर चर्चित कर दिया था। चारों तरफ खबर फैली थी कि आबकारी विभाग के इस मठाधीश को अधिकारी वंदना पाण्डेय ने मुंह नहीं लगाया तो इसने सारे विभाग को ही मीडिया में चर्चित करा दिया था, इससे स्वघोषित हो गया था कि देवास का आबकारी विभाग पुरुष प्रधान है, यहां महिला अधिकारी सफल नहीं हो सकती। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी वंदना पाण्डेय ने इस मठाधीश को मुंह नहीं लगाया, उन्होंने जिले के अंतिम छोर पर तैनात अधिकारियों को मुख्यालय पर बुला लिया, लेकिन इसे अधिकार संपन्न नहीं होने दिया। आबकारी विभाग का यह स्वयंभू मठाधीश, तब से ही अधिकारों के लिए तरस रहा है। एक बार फिर मंदाकिनी दीक्षित नामक महिला अधिकारी, देवास में आबकारी अधिकारी बनकर आई हैं, पुरुष प्रधान विभाग के रूप में कुख्यात हो चुका देवास का आबकारी विभाग, क्या एक महिला अधिकारी को सफल होने देगा? आबकारी विभाग का यह स्वयंभू मठाधीश नवागत आबकारी अधिकारी को सफल होने देगा? या फिर नवागत आबकारी अधिकारी इस मठाधीश के मार्गदर्शन में विभाग का संचालन करेंगी?
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