April 27, 2024

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मनुष्य गति में ही धर्म आराधना विशेष रूप से हो सकती है – रोचक वक्ताश्री संदीपमुनिजी

बखतगढ़। इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती है। प्रमाद के कारण जीव के धर्म करने का समय नष्ट हो रहा है। भगवान ने आगम में कहा है कि जीव को समय मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। चार गति में से नरक गत एवं देव गति के जीव धर्म नहीं कर सकते हैं। तिर्यंच गति के कुछ जीव थोड़ा बहुत श्रावक का धर्म कर सकते हैं। जबकि मनुष्य गति में ही धर्म आराधना विशेष रूप से हो सकती है। जीवन में बाधाएं तो आती हैं, लेकिन इन बाधाओं को पार करते हुए धर्म आराधना कर लेना चाहिए। ये प्रेरणादायी विचार आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुुशिष्य एवं धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती रोचकवक्ताश्री संदीपमुनिजी ने श्री वर्धमान स्थानक भवन बखतगढ़ में शुक्रवार को धर्मसभा में व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे कहा कि सही समझ रखने वाला जीव संसार घटाता है, जबकि जिसमें समझ सही नहीं है तो उस जीव का संसार बढ़ेगा ही। आगम संसार घटाने की बात कहता है। संसार घटेगा तभी मोक्ष की राह मिलेगी।

अहिंसा, संयम, तप ही वास्तव में धर्म है

श्री सुयशमुनिजी ने चार ज्ञान के बारे में बताया कि तीर्थंकर भगवान मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान एवं अवधि ज्ञान ये तीन ज्ञान लेकर आते हैं और दीक्षा लेने के बाद उन्हें मन: पर्यव ज्ञान हो जाता है। जीव को सुपात्र दान एवं निर्दोष दान देने की भी जानकारी होना चाहिए। अहिंसा, संयम एवं तप ही वास्तव में धर्म है। जीव को किसी भी माध्यम से प्रतिरोध मिलता है, वह सही समझ रखते हुए कल्याण के मार्ग पर जाता है। इसलिए सुनना वह जो आत्महितकारी हो और जिसके माध्यम से जीव पापों से बच सकता है। क्योंकि पाप करने से नहीं बचेंगे तो यह भव भ्रमण चलता रहेगा।

साध्वी वृंद का हुआ विहार

साध्वीश्री पुण्यशीलाजी, अनुपमशीलाजी, शीतलप्रभाजी, सारिकाजी, नेहप्रभाजी, अनंतगुणाजी, महकश्रीजी, प्रतिज्ञाजी, आस्थाजी एवं कृतज्ञाजी ठाणा 10 ने शुक्रवार को प्रातः बदनावर विहार किया।

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