पुरातत्व विभाग ने सात वर्षो से नही किए कोई कार्य
बदनावर। नगर कि शान व पहचान अतिप्राचीन श्री बैजनाथ महादेव मंदिर आज देखरेख के अभाव में जर्जर होकर अपना अस्तित्व खोते जा रहा है। लंबे समय से न तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है और न ही शासन प्रशासन। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित बदनावर का बैजनाथ महादेव यहां की संरक्षित इमारत देखरेख के अभाव में अपना अस्तित्व खोती जा रही है।बैजनाथ महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। गुडी पडवा पर इसके नाम से यहां परपंरागत मेला भी लगता है। हर राजनीतिक या धार्मिक आयोजन की शुरुआत यहीं से होती है । यह इमारत पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित है। विभाग द्वारा इसे परमारकालीन बताया जाता है। जबकि कुछ इतिहासविद इसका निर्माण सातवीं सदी में होना बताते है। इसे उडनिया मंदिर भी कहा जाता है। किवदंति है कि कोई तपस्वी अपने तपोबल से इसे यहां उडाकर लाया था। इसलिए इसका नाम उडनिया मंदिर पडा। पुरातत्वविदों के अनुसार उडिया शैली में बना होने के कारण इसे उडनिया मंदिर कहा जाता है। लेकिन वर्तमान में अनदेखी के चलते मंदिर का अस्तित्व खतरें में पडता नजर आ रहा है। मंदिर में जगह-जगह दरारें पड गई है। इससे इमारत को खतरा उत्पन्न हो गया है। मंदिर का सभा मंडप और कुछ हिस्सा तो काफी समय पहले गिर चुका है। तब भी पुरातत्व विभाग द्वारा इसके रखरखाव की ओर ध्यान नही दिया गया। और अब तो मंदिर की दीवारों पर घास और पौधे उग रहे है तो छोटे छोटे कणों के रूप में पत्थरों का क्षरण दिन ब दिन हो रहा है जिससे दरारें बढ रही है। मेन गेट भी नही है तथा परिसर भी पीछे की और से खुला पडा हुआ है। बाउंड्रीवाल भी अधूरी पडी है। पुरातत्व विभाग द्वारा लगाया गया स्मारक बोर्ड भी क्षतिग्रस्त होकर गिर चुका है। विभाग ने कब कब ली सुधजुलाई 2007 में विभाग द्वारा इसका जिर्णोद्धार किया गया था। तब पत्थरों के क्षरण को रोकने के लिए रासायनिक प्रक्रिया से उपचार किया गया था। साथ ही गर्भगृह की मरम्मत कर तडी चालक भी लगाया गया था। इधर उधर बिखरी प्राचीन प्रतिमाओं को यथा स्थान रखने के लिए पेडीस्टर बनाए थे तथा मंदिर के आसपास मजबूती प्रदान करने के लिए लाल फर्श लगाया था। कालोनी की और पत्थर की बाउंड्रीवाल बनाई थी। दिसबंर 2014 में केमिकल संरक्षण करवाया था और परिसर में पेयजल के लिए हैडपंप लगवाया था। अप्रैल 2015 में रोड साइड की बाउंड्रीवाल बनाई गई थी तथा परिसर में पेवर्स लगाए गए थे। श्रद्धालुओं के बैठने के लिए स्टोन की कुर्सिया भी लगाई थी। इसके बाद से 7 वर्ष बीत चुके है किंतु न तो पत्थरों के क्षरण को रोकने के लिए कोई उपाय किए गए और न ही और न ही जिर्णोद्धार संबंधी कोई कार्य। यहां तक कि पुरातत्व विभाग द्वारा 1991 से नियुक्त केयर टेकर को भी 2019 मे यहां से हटाकर धार कर दिया गया। इसके बाद से यह प्राचीन धरोहर लावारिस है। हालाकि जनसहयोग से श्रद्धालुओं ने मंदिर में उद्यान एवं लाल पत्थर के स्थान पर पेवर्स लगाकर सुंदरीकरण का कार्य किया है।
यदि समय रहते मंदिर की सुध नही ली गई तो यह प्राचीन धरोहर धीरे धीरे नष्ट हो जाएगी-मंदिर के पुजारी 72 वर्षीय महादेपुरी गोस्वामी
बैजनाथ मंदिर के जिर्णोद्धार व मरम्मत हेतु स्टीमेट बनाकर स्वीकृति के लिए भोपाल भेजा है। स्वीकृति कब मिलेगी इस बारे में फिलहाल कुछ कहा नही जा सकता है। पर जैसे ही मिलती है तुरंत काम करवाया जाएगा- डां. डीपी पांडेय पुरातत्व विभाग संग्रहाध्यक्ष धार।
पुरातत्व विभाग के अधीन होने से यहां पर कोई कार्य करना भी चाहे तो नहीं कर सकते पुरातत्व विभाग ना खुद कोई कार्य करता है ना श्रद्धालुओं को करने की इजाजत देता है- कैलाश गुप्ता श्रद्धालु
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