October 19, 2024

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पुर्तगालियों को कई बार युद्ध में हराने वाली वीरांगना अब्बक्कादेवी का नाम तक नहीं जानती हमारी नई पीढ़ी

रानी अब्बक्का लड़ाई में अग्निबाण का उपयोग करने वाली आखिरी योद्धा थीं

कर्नाटक राज्योत्सव के अन्तर्गत रानी अब्बक्का पर जारी हुआ चित्रमय पोस्ट कार्ड

 

बदनावर। अब्बक्का का जन्म कर्नाटक के उल्लाल नगर के चौटा राजघराने में हुआ था। चौटा वंश मातृवंशीय परंपरा का पालन करता था इस राजघराने में स्त्रियों का ओहदा प्रमुख होता था अतः अब्बक्का के मामा तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल नगर की रानी घोषित किया। रानी अब्बक्का जैन धर्म का पालन करने वाली एक कुशल प्रशासक और वीर योद्धा थी। पर अफसोस कि ऐसी कई महान हस्तियां हमारी पाठ्य पुस्तकों से कोसों दूर है। हाल ही में कर्नाटक राज्योत्सव के अन्तर्गत भारतीय डाक विभाग द्वारा रानी अब्बक्का के सम्मान में एक चित्रमय पोस्ट कार्ड जारी किया गया।

उक्त जानकारी देते हुए डाक टिकट संग्राहक ओम पाटोदी ने बताया कि मुड़बद्री कर्नाटक पर राज करने वाली रानी अबक्का चोवटिया जिस पर हमे गर्व होना चाहिए इस वीरांगना ने पुर्तगाली सेना को कई बार नाकों चने चबवा दिए।

साल था 1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उसपर चर्च स्थापित कर डाली।मंगलौर का व्यावसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर ‘उल्लाल’ राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी ‘अबक्का चोवटिया’ पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। पर सब के सब शाहिद हो गए।

बाद में भी कई युद्ध में उन्हें मुंह की खानी पड़ी दुसरी बार क्रोधित पुर्तगालियों ने एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही कई सैनिक मारे गए और शेष जान बचा कर भाग गए वहीं उनका मुख्य योद्धा जख्मी होकर खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई। चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोंच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर एक बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला। लेकिन यह क्या? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लडें किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा २,०० जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पडी। बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया। यह रानी अगर देश से बाहर किसी अन्य देश में जन्म लेती तो वहां के इतिहासकार उसका इतना गुणगान करते और वहां के पाठ्यक्रम में इसे प्रमुखता प्रदान की जाती।

बाद अपने ही घर के भीतरी घाती की वजह से इस विरांगना को अपनी जान गंवानी पड़ी। देश को आजादी की लड़ाई भी लम्बे अरसे इन भीतरीघातियों की वजह से चली और वर्तमान समय में भी ये भीतरी घाती नेता और दोगले लोग देश के विकास की राह में रोड़े अटकाते रहते हैं।

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