बदनावर। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र इतना व्यापक, और सार्वभौमिक है कि सिर्फ भारत ही नहीं उनकी कथा अर्थात रामायण महाकाव्य केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में पसन्द की जाती है, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, मॉरीशस, वेस्टइंडीज आदि देशों के प्रवासियों ने रामायण को अपने हृदय में बसाया है। बहुत से एशियाई देशों में रामायण को अपनी भाषा में अनुवादित कर अपने धार्मिक ग्रन्थ के रूप में अपनाया। इतना ही नहीं इन देशों में प्रमुख इंडोनेशिया, थाईलैंड, कम्बोडिया, बर्मा, लाओस, मलेशिया, नेपाल, श्रीलंका आदि इन देशों में सिर्फ रामायण पढ़ी ही नहीं जाती यहां तक की रामलीला खेली भी जाती है। उक्त जानकारी देते हुए डाक टिकट संग्राहक ओम पाटोदी ने बताया कि भारत में जितने डाक टिकट राम पर जारी नहीं हुए उससे अधिक डाक टिकट विदेशी धरती पर जारी हुए हैं जो श्री राम की लोकप्रियता को प्रदर्शित करने का बड़ा पैमाना है। पाटोदी आगे बताते हैं कि भारत के जैन और बौद्ध साहित्य की बात करें तो यहां भी राम के संबंध में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें मुख्य हैं विमलसूरि कृत ‘पउमचरियं’ (प्राकृत), आचार्य रविषेण कृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ’ (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार राम का मूल नाम ‘पद्म’ था।जहां एक ओर और वाल्मीकि रामायण और अन्य भारतीय रामायण में राम के जीवन के उत्तरार्ध पर कोई विशेष प्रकाश नहीं डाला गया वहीं श्रमण संस्कृति में भगवान राम के जीवन केअंतिम क्षण तक का वर्णन किया गया है हजारों वर्ष प्राचीन जैन निर्वाण गाथा के अनुसार राम तपस्या करके महाराष्ट्र के सटाना जिले के मांगीतुंगी पर्वत तीर्थ क्षेत्र से मोक्ष गए थे। यह तीर्थ जैनों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
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