भोपाल। सरप्लस बिजली उत्पादन के लिए अपनी पहचान बनाने वाले मध्य प्रदेश मे कोयला संकट से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। मध्य प्रदेश में 4 सरकारी बिजली संयंत्र हैं। अमरकंटक, सारणी, संजय गांधी और श्रृंगाजी। पिछले वर्ष 6 अक्टूबर को राज्य में 15 लाख 86 हजार टन कोयला स्टॉक में था, जबकि आज 2 लाख 23 हजार टन स्टॉक है। यही कारण है कि 5400 मेगावाट की क्षमता वाले बिजली संयंत्रों में सिर्फ 2 से 3 हजार मेगावाट बिजली ही पैदा हो पा रही है। करीब 10 हजार मेगावाट बिजली की मांग को पूरा करने के लिए केंद्रीय और निजी क्षेत्र से 6.5 हजार मेगावाट बिजली ली जा रही है। मध्यप्रदेश के उत्थान के बाद भी 80 हजार मीट्रिक टन कोयले की आवश्यकता है।16 हजार मेगावाट तक पहुंच सकती है मांगराज्य में रबी सीजन में सबसे ज्यादा बिजली की खपत होती है
अगले 2 महीने में मांग 16,000 मेगावाट तक पहुंच सकती है। अभी 10 हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति में दिक्कत आ रही है, तो जाहिर सी बात है कि अतिरिक्त 6 हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति करना काफी मुश्किल हो सकता है।प्रदेश के 4 में से 2 बड़े पावर प्लांट में महज तीन तीन दिनों का ही कोयला शेष है जबकि दो प्लांटों के पास 7 दिनों का कोयला है मध्य प्रदेश पावर जेनरेटिंग कंपनी पर 500 करोड़ रुपए बकाया है वेस्टर्न कोल फील्डस लिमिटेड के सीएमडी मनोज कुमार बताते हैं कि मध्य प्रदेश पावर जेनरेटिंग कंपनी पर 500 करोड रुपए बकाया है 1 साल पहले तक मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के पास 10 से 15 लाख मैट्रिक टर्न तक कोयले का भंडार हुआ करता था लेकिन अब यह स्थिति निर्मित हो गई है कि कोयले की कमी के चलते बिजली इकाईयां तक बंद रखनी पड़ रही है इतना ही नहीं सुबह के समय बिजली की डिमांड अधिक रहती है तब इकाइयों को क्षमतानुरूप चलाया जा रहा है बाकी समय लगभग सभी इकाइयों को आधी क्षमता से चलाना पड़ रहा है
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