April 23, 2024

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धन संसार में भटकाता है, वहीं धर्म जीव को तिराने वाला है- साध्वीश्री सुव्रताजी

बखतगढ़। व्यक्ति आवश्यकता से अधिक धन कमाने में लगा है, धन के पीछे दौड़ रहा है। यह जितना भी धन कमाया है वह यहीं पर रहने वाला है। एक मात्र धर्म ही मनुष्य को शरण देने वाला है और अंतिम समय तक साथ रहने वाला है तो वह सिर्फ एक धर्म ही है। धन संसार में भटकाने वाला है तो, वहीं धर्म जीव को तिराने वाला है। ये प्रेरणादायी विचार जिनशासन गौरव आचार्यश्री उमेशमुनिजी ‘अणु’ के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वीश्री सुव्रताजी ने जैन उपाश्रय पौषध शाला भवन बखतगढ़ में धर्मसभा में व्यक्त किए। साध्वीश्रीजी ने कहा कि धर्म करने में कठिनाई अवश्य आती है, लेकिन इसका परिणाम आत्म हितकारी होता है। धर्म करने से सुगति ही मिलती है। ज्ञानीजन भी धर्म का मार्ग बताते हैं।

धर्म के मर्म को समझने की आवश्यकता

साध्वीजी ने आगे कहा कि व्यक्ति जितना समय धन कमाने में लगाते हैं, उतना समय यदि धर्म करने में लगाएंगे तो उसकी गति सुधर जाएगी। मलिनता को पैदा करने वाले विचार ही होते हैं। इसलिए विचारों में शुद्धता, सरलता रहना चाहिए। धर्म के मर्म को समझने की आवश्यकता है। दान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए साध्वीजी ने कहा कि जीव को दान देने की भावना भी रखना चाहिए। दान नहीं दिया तो वह भोग में चला जाएगा और यदि भोग में नहीं गया तो नाश हो जाएगा।

यतना रखना अत्यंत आवश्यक है

साध्वीश्री सारिकाजी ने पाप पर व्याख्या करते हुए फरमाया कि कहा कि भगवान स्वयं तिरते हैं और दूसरों को भी संसार सागर से तिराने का मार्ग बताते है, पाप से बचने की राह बताते हैं। आज जीव को यतना रखने की अत्यंत आवश्यकता है। यदि यतना नहीं रखेंगे तो निरंतर वायु काय की विराधना होगी। जीवन में जितने भी पाप का बंधन हो रहा है वह एक मात्र शरीर की सुविधा, सुकून पाने के लिए ही बंधन कर रहे है। पाप के मार्ग को जानेंगे, तभी पाप को छोड़ सकेंगे। संसार में जीव मनोरंजन प्रेमी है। जिसके कारण जीवन रूपी जहाज डूब रहा है। अट्ठारह पाप शरीर के लिए ही कर रहा है, इससे बचने के लिए शरीर को शरीर न समझे तो ही आत्मा की शुद्धि होगी। शरीर के प्रति निष्ठा हो तो दया के भाव आते हैं। शरीर की चिंता के कारण दया के भाव नहीं आते है। आज जीव संसार में इतना रम गया है कि पाप को पाप नहीं समझ रहा है। इसीलिए जीव गति गति में भटक रहा है। यदि चारों गति में भ्रमण पर विराम लगाना है तो भगवान की वाणी को श्रवण कर आचरणित्त करना पड़ेगा। तभी आत्मा को सदा सदा के लिए भव भ्रमण से मुक्ति मिलकर मोक्षत्व प्राप्त होगा।

जिनवाणी का लाभ ले रहे है

साध्वीश्री सुव्रताजी, साध्वीश्री शीतलप्रभाजी, साध्वीश्री सारिकाजी, साध्वीश्री अनंतगुणाजी, साध्वीश्री प्रतिज्ञाजी ठाणा 5 के दर्शन, वंदन , व्याख्यान, मांगलिक, ज्ञान चर्चा आदि का लाभ श्रावक श्राविकाएं ले रहे है। धर्मसभा में कुशलगढ़ (राजस्थान) से भी श्रावक भाई आए एवं दर्शन, वंदन कर जिनवाणी श्रवण करने का लाभ लिया। धर्मसभा का संचालन दिलीप दरड़ा ने किया।

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