रतलाम। लोकतांत्रिक परंपरा में जनता का नेताओं से मिलना घेराव करना सामान्य बात है ।
जनप्रतिनिधियों के घेराव के साथ असामाजिक तत्वों ने अगर पत्थर बोतल फेकी तो वह निंदनीय है ।
क्या यह सब जिला प्रशासन की सोची समझी साजिश नही है ।आदिवासीयो की रैली के बीच मे जन प्रतिनिधि के वाहन क्या बीना सोचे समझे लाये गये ।
जिला प्रशासन ने जिस तरीके से आदिवासी नेताओ को गिरफ्तार किया , उन पर एक दर्जन धाराओ मे मुकदमा दर्ज कराया , कोर्ट में सुनवाई के दौरान पूरे कोर्ट परिसर को छावनी बना दिया , क्या दर्शाता है ? क्या आतंकवादियो की सुनवाई हो रही थी ?
शायद पुलिस मानती है कि आदिवासीयो को इस तरह से ही ट्रिट किया जाना चाहिये ।
क्या आदिवासीयो का कोई लोकतांत्रिक अधिकारी नहीं है । जिला प्रशासन एक बहुत बड़े तबके मे व्यवस्था के प्रति अविश्वास पैदा कर रहा है , जो लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है ।
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